HII दोस्तो कैसे हैं आप सब
आज आप सभी को रेडियो सक्रियता के बारे में बताया गया है, जो भी आपके परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है वह आपको दी जा रही है। दोस्तो जानने के लिए बहोत सी बातें है पर मैं आपको उतना ही बताऊंगा जितने से 90–95 % उम्मीद है आएगी इसलिए मैने उन बातों को नही लिए जिनके आने के कम उम्मीद है। इसलिए आपको जितना इसमे बताया जा रहा है उतना आप जरूर याद रखे और दोस्तो अगर आपको पसंद आये तो प्लीज शेयर करे और अगर कुछ सुझाव या प्रश्न हो तो कॉमेंट बॉक्स में लिखे, हम आपके सवाल का जवाब जल्द से जल्द देने का प्रयास करेंगे।रेडियो सक्रियता (Radioactivity) क्या है ?
प्रकृति में पाये जाने वाले वे तत्व जो स्वतः विखंडित (self disintigrate) होकर कुछ अदृश्य किरणों (invisible rays) का उत्सर्जन करते रहते हैं, रेडियोसक्रिय तत्व कहलाते हैं
तथा यह घटना रेडियो सक्रियता(Radioactivity) कहलाती है।
रेडियोसक्रिय तत्वों से निकलने वाली अदृश्य किरणें रेडियोसक्रिय किरणें कहलाती हैं ।
रेडियोसक्रिय किरणे (Radioactive Rays)
रेडियोसक्रिय पदार्थों से निकलने वाली अदृश्य किरणों को रेडियोसक्रिय किरणे (Radioactive Rays) कहते हैं।
रेडियोसक्रिय पदार्थों से निकलने वाली इन किरणों को रदरफोर्ड ने 1902 ई० में चुम्बकीय तथा विद्युत् क्षेत्र से प्रवाहित किया
और पाया कि कुछ किरणे विद्युत् क्षेत्र के ऋण ध्रुव की ओर और कुछ किरणें विद्युत् क्षेत्र के धन ध्रुव की ओर मुड़ जाती हैं।
तथा अन्य किरणों पर चुम्बकीय एवं विद्युत् क्षेत्र का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है और ये सीधे गमन करती हुई निकल जाती हैं।
रदरफोर्ड ने इन किरणों को क्रमशः अल्फा-किरण (α -rays),बीटा किरण (β -rays)तथा गामा-किरण (γ -rays)कहा।
अगर आप से पूछा जाए रेडियो सक्रियता के दौरान निकलने वाली अल्फा बीटा और गामा किरणों का पहचान किसने किया तो आपका जवाब होगा रदरफोर्ड ने।
RADIOACTIVITY GK |
रेडियोसक्रिय किरणों के गुण
अल्फा (α) किरणों के गुण
1) ये किरणे अति सूक्ष्म धन आवेशित कणों की बनी होती हैं।
इस कारण विद्युत् क्षेत्र से होकर गमन करते समय ये किरणे विद्युत् क्षेत्र के ऋण ध्रुव की ओर मुड़ जाती हैं।
इनकी मात्रा हाइड्रोजन परमाणु की मात्रा से चार गुनी अधिक होती है।
3) ये कण अत्यंत तीव्र वेग से रेडियोसक्रिय तत्वों के नाभिक से बाहर निकलते हैं।
इसका वेग प्रकाश के वेग का लगभग 1/10 भाग होता है।
1) ये किरणे ऋण आवेशयुक्त अत्यंत सूक्ष्म कणों की बनी होती हैं।
इस कारण विद्युत् क्षेत्र से होकर गमन करते समय ये किरणे विद्युत् क्षेत्र के धन ध्रुव की ओर मुड़ जाती है
2) इन कणों के लिए आवेश और द्रव्यमान का अनुपात e/m कैथोड किरणों में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों के समान होता है। अतः ये किरणे इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह हैं।
3) इन किरणों का द्रव्यमान हाइड्रोजन परमाणु के द्रव्यमान का 1/1840 होता है
4) इन कणों का वेग प्रकाश के वेग का लगभग 9/10 वाँ भाग होता है
अर्थात् इनका वेग α-कण के वेग का नौ गुना होता है।
5) इनकी गतिज ऊर्जा α-कणों से बहुत कम होती है, क्योंकि इनका द्रव्यमान कम होता है।
6) कम गतिज ऊर्जा के कारण इनकी आयनन क्षमता α-कणों की अपेक्षा कम होती है।
7) उच्च वेग और कम द्रव्यमान होने के कारण इनकी भेदन क्षमता (Penetrating Power) α-कणों से 100 गुनी अधिक होती है।
इनको रोकने के लिए 0.01 मीटर मोटी ऐलुमिनियम की चादर आवश्यक होती है।
8) ये किरणे फोटोग्राफिक प्लेट को प्रभावित करती हैं
9) इनकी गतिज ऊर्जा कम होने के कारण इन किरणों में जिंक सल्फाइड या बेरियम प्लैटिनोसायनाइड जैसे लवणों में स्फुरदीप्ति उत्पन्न करने की क्षमता नहीं के बराबर होती है।
10) किसी विद्युत् क्षेत्र से होकर गुजरने पर ये धन-ध्रुव की ओर मुड़ जाती हैं, किन्तु α-किरणों की अपेक्षा इनका विचलन अधिक होता है।
11) इन किरणों में जीव कोशिकाओं (Living cells) को नष्ट करने की क्षमता होती है।
गामा (γ) किरणों के गुण
1) ये किरणे विद्युततः उदासीन होती हैं।
इस कारण विद्युत् क्षेत्र से होकर गमन करते समय ये किरणे विचलित नहीं होती हैं।
2) ये किरणे अति लघु तरंगदैर्घ्य वाली विद्युत् चुम्बकीय तरंग है। ये किरणें कणों की नहीं बनी होती हैं।
3) इनका वेग प्रकाश के वेग के लगभग बराबर होता है।
4) इनकी मात्रा शून्य होती है। अतः गामा किरणे अद्रव्य (Non Material) प्रकृति वाली होती है।
5) अति उच्च वेग से गतिशील होने के कारण गामा किरणों की भेदन क्षमता (Penetrating Power) α और β किरणों की तुलना में सबसे अधिक होती है।
6) इन किरणों का द्रव्यमान नहीं के बराबर होने के कारण इनका फोटोग्राफिक प्लेट एवं जिंक सल्फाइड या बेरियम प्लैटिनोसायनाइड पर प्रभाव बहुत कम पड़ता है।
7) इन किरणों में जीव-कोशिकाओं को नष्ट करने की शक्ति होती है।
8) गतिज ऊर्जा का मान बहुत कम होने के कारण इन किरणों में गैसों को आयनित करने की क्षमता बहुत कम होती है।
रेडियोसक्रियता की खोज (Discovery of Radioactivity)
1896 ई. में फ्रांस के वैज्ञानिक हेनरी बेकरेल ने सर्वप्रथम रेडियोसक्रियता का पता लगाया।
हेनरी बेकरेल ने पाया कि यूरेनियम तथा यूरेनियम लवणों से कुछ अदृश्य किरणे स्वतः उत्सर्जित होते हैं।
प्रारम्भ में इन अदृश्य किरणों को बेकरेल किरणे (Becquerel Rays) कहा गया।
रदरफोर्ड ने 1902 ई० में इन किरणों को क्रमशः अल्फा-किरण α -rays) बीटा किरण (β -rays) तथा गामा-किरण γ -rays) कहा।
रेडियो सक्रियता कितने प्रकार के होते है ?
रेडियो सक्रियता दो प्रकार के होते है –
प्राकृतिक रेडियो सक्रियता
अप्राकृतिक रेडियो सक्रियता
प्राकृतिक रेडियो सक्रियता
यदि यह क्रिया स्वतः या अपने आप होती है, तो इसे प्राकृतिक रेडियो सक्रियता कहते हैं।
उदाहरण के लिए - यूरेनियम, रेडियम, थोरियम आदि तत्वों का विखंडन स्वयं होता रहता है।
अतः इन तत्वों में पायी जाने वाली रेडियोसक्रियता प्राकृतिक रेडियोसक्रियता कहलाती है।
92U238 (α-कण के निकलने से) → 90Th234 (β-कण के निकलने से)→ 91Pa234 (β-कण के निकलने से)→ 92U234 → …………..
अप्राकृतिक रेडियो सक्रियता
जबकि मनुष्य के द्वारा कुछ क्रिया किए जाने पर हो तो इसे कृत्रिम रेडियो सक्रियता कही जाती है।
उदाहरण के लिए –
मैग्नीशियम (mg), जो एक स्थायी तत्व है, पर अल्फा कणों (2He4) से प्रहार करने पर एक अस्थायी और रेडियोसक्रिय तत्व सिलिकन (14Si27) बनता है
तथा न्यूट्रॉन (0n1) मुक्त होता है, फिर यह 14Si27 स्वतः परिवर्तित होकर स्थायी ऐलुमिनियम(Al) में बदल जाता है।
2Mg24 (स्थायी) + 2He4 → 14Si27 (अस्थायी) + 0n1 → 13Al27 + +1e0 (पॉजीट्रॉन)
IMPORTANT POINT MUST KEEP IN YOUR MIND
प्राकृतिक रेडियो सक्रियता मुख्यतः भारी नाभिकों में होती है। (atomic no > 82)
यूरेनियम (परमाणु संख्या - 92) पहला खोजा गया प्राकृतिक रेडियोसक्रिय तत्व है।
1898 ई० में ही मैडम क्यूरी ने अन्य रेडियोसक्रिय पदार्थों की खोज के क्रम में बतलाया कि थोरियम धातु के तत्व में भी रेडियोसक्रियता पायी जाती है।
1902 ई० में मैडम क्यूरी तथा उनके पति पियरे क्यूरी ने पता लगाया कि यूरेनियम के खनिज पिच ब्लैंड में यूरेनियम की अपेक्षा लगभग चार गुनी अधिक रेडियोसक्रियता उपलब्धता होती है।
इससे स्पष्ट हुआ कि पिच ब्लैंड में यूरेनियम से भी अधिक रेडियोसक्रिय तत्व उपस्थित है।
इस अनुमान के आधार के फलस्वरूप 1903 ई० में पिच ब्लैंड से रेडियम (Radium) नामक एक अत्यंत रेडियोसक्रिय तत्व की खोज की।
आज लगभग 40 प्राकृतिक रेडियोसक्रिय समस्थानिक एवं अनेक रेडियोसक्रिय तत्व ज्ञात हैं।
किसी तत्व के रेडियोसक्रिय परिवर्तन में परमाणु के नाभिक का विखंडन होता है।
इसका कारण यह है कि रेडियोसक्रिय तत्वों के परमाणु अस्थायी होते हैं।
ऐसे परमाणु के नाभिक में न्यूट्रॉनों की संख्या अत्यधिक होती है।
रेडियोसक्रिय विखंडन (Radioactive Disintegration) क्या है ?
रेडियोसक्रिय तत्वों के नाभिक से रेडियोसक्रिय तत्वों के स्वतः उत्सर्जन की प्रक्रिया को रेडियोसक्रिय विखंडन या रेडियो सक्रिय क्षय (Radioactive Decay) कहा जाता है।
चूँकि यह क्रिया स्वाभाविक रूप से स्वतः होती है, अतः इसे प्राकृतिक विखण्डन (Natural Disintegration) भी कहते हैं।
इस क्रिया में α, β और γ किरणों का उत्सर्जन होता है।
1913 ई. में सॉडी (Soddy), फॉजान्स (Fajans) तथा रदरफोर्ड (Rutherford) ने रेडियोसक्रिय विखंडन से संबंधित सिद्धांत का प्रतिपादन किया। इसके अनुसार -
रेडियोसक्रिय तत्वों के परमाणु अस्थायी होते हैं, जो स्वतः विखंडित होकर नये तत्वों में परिवर्तित होते रहते हैं।
α-कण और β-कण रेडियोसक्रिय तत्व के परमाणु के नाभिक से उत्पन्न होते हैं।
रेडियोसक्रिय परिवर्तन
α – परिवर्तन : α-कण के निकलने से होने वाले परिवर्तन को α-परिवर्तन कहते हैं।
β – परिवर्तन : β-कण के निकलने से होने वाले परिवर्तन को β-परिवर्तन कहते हैं।
समूह विस्थापन का नियम (Group Displacement Law) क्या है ?
किसी रेडियोसक्रिय तत्व परमाणु के नाभिक से एक α-कण के उत्सर्जन से प्राप्त होने वाले नये तत्व का आधुनिक आवर्त सारणी में स्थान जनक तत्व के स्थान से दो समूह बायीं ओर चला जाता है
वहीं β कण के उत्सर्जन से प्राप्त होने वाले नए तत्व का आधुनिक आवर्त सारणी में स्थान जनक तत्व के स्थान से एक समूह दायीं ओर चला जाता है।
इस नियम को ही समूह विस्थापन का नियम (Group Displacement Law) / soddy fejans law कहते हैं।
अर्द्धआयु काल (Half Life Period) क्या है ?
वह समयांतराल जिसमें किसी रेडियोसक्रिय तत्व में उपस्थित परमाणुओं की संख्या विखंडित होकर प्रारंभिक संख्या की आधी हो जाती है, उस तत्व की अर्द्धआयु काल कहलाता है।
दूसरे शब्दों में,किसी रेडियोसक्रिय पदार्थ की सक्रियता उसकी प्रारंभिक सक्रियता से ठीक आधी हो जाने में जितना समय लगता है, उसे उस पदार्थ की अर्द्धआयु कहते हैं।
रेडियोसक्रिय पदार्थ की अर्द्धआयु कुछ सेकण्डों से लेकर लाखों वर्षों तक हो सकती है।
उदाहरण के लिए, पोलोनियम के एक समस्थानिक (84Po214) की अर्द्धआयु सेकण्ड होती है,
जबकि यूरेनियम के समस्थानिक की अर्द्धआयु 4.5 × 10^9 वर्ष होती है।
रेडियोसक्रिय पदार्थ की अर्द्धआयु को किसी भी परिवर्तन द्वारा बदला नहीं जा सकता है, यह हमेशा एकसमान रहता है।
किसी रेडियोसक्रिय पदार्थ की अर्द्धआयु उसके द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करती है।
औसत आयु (Average Life) क्या है ?
विखंडन स्थिरांक (k) के व्युत्क्रम को हीं किसी रेडियोसक्रिय पदार्थ की औसत आयु कहते हैं।
औसत आयु तथा अर्द्धआयु में संबंध क्या है ?
औसत आयु = अर्द्ध आयु / 0.693
रेडियोसक्रियता की इकाई (Unit of Radioactivity) क्या है ?
रेडियोसक्रियता की इकाई को क्यूरी (Curie) कहते हैं।
किसी रेडियोसक्रिय पदार्थ का वह परिमाण जिसमें प्रति सेकण्ड 3.70 × 10^10 विखंडन होते हैं, क्यूरी कहलाता है।
अर्थात् एक क्यूरी = 3.70 × 10^10 विखंडन प्रति सेकण्ड
रेडियो आइसोटोप डेटिंग (Radio Isotope Dating) क्या है & महत्वपूर्ण उपयोग ?
किसी रेडियोसक्रिय समस्थानिक की मात्रा का किसी पत्थर के नमूने या किसी जैव अवशेष में माप करके उनके आयु का निर्धारण करना रेडियो आइसोटोप डेटिंग कहलाता है।
कार्बन डेटिंग (Carbon Dating) रेडियो आइसोटोप डेटिंग का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।
कार्बन डेटिंग के द्वारा जीवाश्मों, मृत पेड़-पौधों आदि की आयु का अंकन किया जाता है।
निर्जीव वस्तुओं जैसे - पृथ्वी, पुरानी चट्टानों आदि की आयु ज्ञात करने के लिए यूरेनियम का प्रयोग किया जाता है। इसे यूरेनियम द्वारा आयु अंकन (Dating by Uranium) कहते हैं।
अधिक पुरानी चट्टानों के लिए पोटैशियम-ऑर्गन डेटिंग विधि भी अधिक उपयुक्त सिद्ध हुई है।
मृत पेड़-पौधों और जानवरों का आयु निर्धारण उनमें 6C14 और 6C12 का अनुपात ज्ञात करके किया जाता है।
कोबाल्ट के समस्थानिक 27Co60 का उपयोग कैसर के इलाज में तथा मस्तिष्क में विकसित होने वाली ट्यूमर (Tumor) को नष्ट करने में किया जाता है ।
रेडियोसक्रिय समस्थानिकों का उपयोग पाचन तंत्र का अध्ययन करने में भी किया जाता है।
रेडियोसक्रिय सोडयम का उपयोग रुधिर परिसंचरण तंत्र में उत्पन्न किसी प्रकार के विकार को ज्ञात करने में किया जाता है।
रेडियोसक्रिय आयोडीन का उपयोग थायरॉइड ग्रंथि में उत्पन्न विकार ज्ञात करने में किया जाता है।
रेडियोसक्रिय फॉस्फोरस का उपयोग अस्थि रोगों के इलाज में होता है।
रेडियोसक्रिय सोडियम के द्वारा शरीर में रक्त प्रवाह का वेग मापा जाता है।
रेडियोसक्रिय लोहा का उपयोग एनीमिया (अरक्तता) रोग ज्ञात करने में होता है।
रेडियोसक्रिय यूरेनियम (92U238) का उपयोग पृथ्वी की आयु निर्धारण में किया जाता है।
कम क्रियाशील रेडियोसक्रिय किरणों का उपयोग अनाज, फल, सब्जियों आदि के रोगाणुनाशन में किया जाता है।
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EARTH PLANET |
Good morning sir
ReplyDeleteI am SHRUTI SINGH RAJPOOT FROM PATNA
I am really thankful to u sir.
Becoz u are fabulous sir ur way of writing is awesome ....ur content as well as cleanness is superb.
Sir please upload science as soon as possible
Sir mai apka regula follower hujb se mai apka notes pad raha hu mujhe nhi lagta ki mujhe or kuch erta pade ki jarurat hai apni language mai bolu to ek no sir ab mujhe lagta hai ki mera gk GS sudherega.....
ReplyDeleteApko jitna thanks bolu utna kam hai hats off
ReplyDeleteBahut aacha aap knowledge dete hai
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