HII दोस्तो कैसे हैं आप सब
आज आप सभी को स्वामी दयानन्द सरस्वती के बारे में बताया गया है, जो भी आपके परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है वह आपको दी जा रही है। दोस्तो जानने के लिए बहोत सी बातें है पर मैं आपको उतना ही बताऊंगा जितने से 95 - 100 % उम्मीद है आएगी इसलिए मैने उन बातों को नही लिए जिनके आने के कम उम्मीद है। इसलिए आपको जितना इसमे बताया जा रहा है उतना आप जरूर याद रखे और दोस्तो अगर आपको पसंद आये तो प्लीज शेयर करे और अगर कुछ सुझाव या प्रश्न हो तो कॉमेंट बॉक्स में लिखे, हम आपके सवाल का जवाब जल्द से जल्द देने का प्रयास करेंगे।
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संक्षिप्त परिचय
महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती आधुनिक भारत के महान चिन्तक, समाज-सुधारक, अखंड ब्रह्मचारी तथा आर्य समाज के संस्थापक थे।
स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म गुजरात के राजकोट जिले के काठियावाड़ क्षेत्र में टंकारा गाँव के निकट मौरवी नामक स्थान पर 12 फरवरी, 1824 को श्रेष्ठ ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
उनके पिता का नाम अंबाशंकर और माता का नाम यशोदा बाई था। उनके बचपन का नाम मूलशंकर था।
वे तीन भाईयों और दो बहनों में सबसे बड़े थे।
स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म – गुजरात के राजकोट जिले
बचपन का नाम – मूल शंकर तिवारी
भारत का मार्टिन लूथर किंग – दयानंद सरस्वती
गुरु – स्वामी विरजानंद सरस्वती
इन्होने शब्द ब्राह्मण को अपने कर्मो से परिभाषित किया। इनके अनुसार ब्राह्मण वही होता हैं जो ज्ञान का उपासक हो और अज्ञानी को ज्ञान देने वाला दानी।
स्वामी जी ने जीवन भर वेदों और उपनिषदों का पाठ किया और संसार के लोगो को उस ज्ञान से लाभान्वित किया।
इन्होने मूर्ति पूजा को व्यर्थ बताया, निराकार ओमकार में भगवान का अस्तित्व है, यह कहकर इन्होने वैदिक धर्म को सर्वश्रेष्ठ बताया।
LORD SHIVA |
1857 की क्रान्ति के दो वर्ष बाद 1859 स्वामी जी ने स्वामी विरजानन्द सरस्वती को अपना गुरु बनाया और उनसे दीक्षा ली।
स्वामी विरजानन्द के आश्रम में रहकर उन्होंने वेदों का अध्ययन किया, उन पर चिन्तन किया और उसके बाद अपने गुरु के निर्देशानुसार वे वैदिक ज्ञान के प्रचार-प्रसार में जुट गए।
1875 में स्वामी दयानन्द सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना की।
स्वामी जी का धर्म के प्रति विचार
वेदों को छोड़ कर कोई अन्य धर्मग्रन्थ प्रमाण नहीं है -
इस सत्य का प्रचार करने के लिए स्वामी जी ने सारे देश का दौरा करना प्रारम्भ किया और जहां-जहां वे गये प्राचीन परम्परा के पण्डित और विद्वान उनसे हार मानते गये।
संस्कृत भाषा का उन्हें सम्पूर्ण ज्ञान था। संस्कृत में वे धाराप्रवाह बोलते थे।
उन्होंने ईसाई और मुस्लिम धर्मग्रन्थों का भली-भांति अध्ययन किया था।
उन्होंने ज्ञान के प्रचार के लिए तीन-तीन मोर्चों पर संघर्ष आरंभ कर दिया। दो मोर्चे तो ईसाई और इस्लाम के थे किन्तु तीसरा मोर्चा सनातन धर्म हिन्दुओं का था।
स्वामी जी प्रचलित धर्मों में व्याप्त बुराइयों का कड़ा खण्डन करते थे। सर्वप्रथम उन्होंने उसी हिंदु धर्म में फैली बुराइयों व पाखण्डों का खण्डन किया, जिस हिंदु धर्म में उनका जन्म हुआ हुआ था, तत्पश्चात अन्य मत-पंथ व सम्प्रदायों में फैली बुराइयों का विरोध किया।
इससे स्पष्ट होता है वे न तो किसी के पक्षधर थे, न ही किसी के विरोधी नहीं थे।
वे केवल सत्य के पक्षधर थे, समाज सुधारक थे व सत्य को बताने वाले थे।
स्वामी जी सभी धर्मों में फैली बुराइयों का विरोध किए चाहे वह सनातन धर्म हो या इस्लाम हो या ईसाई धर्म हो।
स्वामी दयानंद सरस्वती ’नाम मिला – स्वामी पूर्णानंद द्वारा
आर्य समाज की स्थापना – 1875
स्थान – मुंबई
उद्देशय – वैदिक धर्म को पुन: स्थापित करना।
स्वामी जी के महत्वपूर्ण विचार
स्वामी दयानंद सरस्वती ने कहा था – “समस्त ज्ञान का स्रोत वेद है।
स्वामी दयानंद सरस्वती के प्रसिद्ध नारे – वेदो की ओर लौटे।
हिन्दी को उन्होंने 'आर्यभाषा' का नाम दिया था।
सर्वप्रथम “स्वदेशी” और “स्वराज” शब्द का प्रयोग – दयानंद सरस्वती
भारत भारतीयों के लिए है
विदेशी राज्य चाहे वह कितना ही अच्छा क्यों ना हो, से स्वदेशी राज्य, चाहे उसमें कितनी ही कमियां क्यों ना हो, श्रेष्ठ होता है।
स्वामी जी के द्वारा किया गया महत्वपूर्ण कार्य
स्वामी दयानन्द जी ने छुआछूत, सती प्रथा, बाल विवाह, नर बलि, धार्मिक संकीर्णता तथा अन्धविश्वासों के विरुद्ध उन्होंने जमकर प्रचार किया था और विधवा विवाह, धार्मिक उदारता तथा आपसी भाईचारे का उन्होंने समर्थन किया था।
27 फ़रवरी 1883 को उदयपुर में स्वामी दयानन्द सरस्वती ने एक स्वीकारपत्र प्रकाशित किया था जिसमें उन्होंने अपनी मृत्योपरान्त 23 व्यक्तियों को परोपकारिणी सभा की जिम्मेदारी सौंपी थी जो कि उनके बाद उनका काम आगे बढ़ा सकें। इनमें महादेव गोविन्द रानडे का भी नाम है।
स्वामी दयानन्द जी का शरीर 1883 में 30 अक्टूबर को दीपावली के दिन पंचतत्त्व में विलीन हो गये।
महत्वपूर्ण बातें
बेलेंन टाइन शिरोल ने बाल गंगाधर तिलक को भारतिय की अशांति का जनक कहा था।
बेलेंन टाइन शिरोल ने दयानंद सरस्वती को भारत का मार्टिन लूथर कहा था।
1822 में उन्होंने स्वदेसी का नारा दिया था। स्वदेसी का उपयोग करने वाले वो प्रथम व्यक्ति थे।
स्वामी दयानंद सरस्वती की प्रसिद्ध पुस्तक – “सत्यार्थ प्रकाश” , वेद भाष्य , वेद भाष्य भूमिका
स्वामी दयानंद सरस्वती ने कहा था – आर्य तिब्बत से आए
शुद्धि आंदोलन – आर्य समाज के लोगों ने चलाएं।
देशभर में दंगे शुध्दि आंदोलन से हुए।
भारतीय अशांति का जनक – आर्य समाज संस्था को और व्यक्ति के रूप में बाल गंगाधर तिलक को कहा गया।
( वेलेटाइन शिरॉल ने इंडियन अनरेस्ट पुस्तक में कहा था ।)
रविंद्र नाथ टैगोर ने कहा था – दयानंद सरस्वती आधुनिक भारत के पथ-प्रदर्शक थे।
मृत्यु के बाद उनके शिष्यों में मतभेद – लाला हंसराज ( गुरु के शिक्षाओं का प्रचार प्रसार इंग्लिश में )
दूसरे स्वामी श्रद्धानंद – गुरुकुल में ( गुरु के शिक्षाओं का प्रचार प्रसार हिंदी में।)
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