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महात्मा गांधी जी का सम्पूर्ण जीवन परिचय और स्वतंत्रता संग्राम का संघर्ष-FULL DETAIL-GK-CURRENT-AFFAIRS-HINDI

HII दोस्तो कैसे हैं आप सब 

आज आप सभी को महात्मा गांधी जी का सम्पूर्ण जीवन परिचय और स्वतंत्रता संग्राम का संघर्ष के बारे में बताया गया है, जो भी आपके परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है वह आपको दी जा रही है। दोस्तो जानने के लिए बहोत सी बातें है पर मैं आपको उतना ही बताऊंगा जितने से 95 - 100 उम्मीद है आएगी इसलिए मैने उन बातों को नही लिए जिनके आने के कम उम्मीद है। इसलिए आपको जितना इसमे बताया जा रहा है उतना आप जरूर याद रखे और दोस्तो अगर आपको पसंद आये तो प्लीज शेयर करे और अगर कुछ सुझाव या प्रश्न हो तो कॉमेंट बॉक्स में लिखे, हम आपके सवाल का जवाब जल्द से जल्द देने का प्रयास करेंगे।

THANK YOU SO MUCH


गांधी जी का परिचय


मोहनदास करमचन्द गांधी जिन्हें महात्मा गांधी के नाम से भी जाना जाता है।

महात्मा गांधी का जन्म गुजरात के पोरबंदर में 2 अक्टूबर 1869 को हुआ था। 

इनके पिता का नाम करमचंद गांधी और माता का नाम पुतलीबाई था।

ब्रिटिश हुकूमत में इनके पिता करमचंद गांधी पोरबंदर और राजकोट के दीवान थे।

महात्मा गांधी जी अपने तीन भाइयों में सबसे छोटे थे।

गांधी जी का सीधा-सरल जीवन इनकी मां से प्रेरित था। गांधी जी का पालन-पोषण वैष्णव मत को मानने वाले परिवार में हुआ, और उनके जीवन पर भारतीय जैन धर्म का गहरा प्रभाव पड़ा।


Mahatma Gandhis entire life introduction and struggle for freedom struggle
RANAKPUR JAIN TEMPLE RAJASTHAN


जिसके कारण वह सत्य और अहिंसा में अटूट विश्वास करते थे और आजीवन उसका अनुसरण भी किया करते थे।


गांधी जी का नाम और उपाधि


मोहनदास करमचन्द गांधी जिन्हें महात्मा गांधी के नाम से भी जाना जाता है।

संस्कृत भाषा में महात्मा का मतलब महान आत्मा होता है यह एक सम्मान सूचक शब्द है।

गांधी जी को महात्मा के नाम से सबसे पहले 1915 में कालिदास ने संबोधित किया था।

एक अन्य मत के अनुसार स्वामी श्रद्धानन्द ने 1915 मे महात्मा की उपाधि दी थी।

तीसरा मत ये है कि गुरु रविंद्रनाथ टैगोर ने महात्मा की उपाधि प्रदान की थी 12 अप्रैल 1919 को अपने एक लेख मे।

उन्हें बापू (गुजराती भाषा में बापू यानी पिता) के नाम से भी याद किया जाता है।

एक मत के अनुसार गांधीजी को बापू सम्बोधित करने वाले प्रथम व्यक्ति उनके साबरमती आश्रम के शिष्य थे।


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साबरमती आश्रम


गांधी जी को भारत का राष्ट्रपिता भी कहा जाता है। सुभाष चन्द्र बोस ने वर्ष 1944 में रंगून रेडियो से गांधी जी के नाम जारी प्रसारण में उन्हें ‘राष्ट्रपिता’ कहकर सम्बोधित किया था।

प्रति वर्ष 2 अक्टूबर को उनका जन्म दिन भारत में गांधी जयंती के रूप में और पूरे विश्व में अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के नाम से मनाया जाता है।

गांधी जी की शिक्षा-दीक्षा


गांधी जी की प्रारम्भिक शिक्षा पोरबंदर में हुई थी।

पोरबंदर से उन्होंने मिडिल स्कूल तक की शिक्षा प्राप्त की।

इसके बाद इनके पिता का राजकोट ट्रांसफर हो जाने की वजह से उन्होंने राजकोट से अपनी बची हुई शिक्षा पूरी की।

1887 में राजकोट हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की और आगे की पढ़ाई के लिये भावनगर के श्यामल दास कॉलेज में प्रवेश प्राप्त किया, लेकिन घर से दूर रहने के कारण वह अपना ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाएं और अस्वस्थ होकर पोरबंदर वापस लौट गए।

4 सितम्बर 1888 को इंग्लैण्ड के लिये रवाना हुए। 


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TOWER BRIDGE ENGLAND


गांधीजी ने लंदन में लंदन वेजीटेरियन सोसायटी की सदस्यता ग्रहण की और इसके कार्यकारी सदस्य बन गये।

गांधी जी लंदन वेजीटेरियन सोसाइटी के सम्मेलनों में भाग लेने लगे और पत्रिका में लेख लिखने लगे।

यहां 3 सालों (1888 - 1891) तक रहकर अपनी बैरिस्टरी की पढ़ाई पूरी की और 1891 में वापस भारत आ गए।


गांधी जी का वैवाहिक जीवन


गांधी जी का विवाह 1883 में मात्र 13 वर्ष की आयु में कस्तूरबा जी से हुआ था।

लोग कस्तूरबा जी को प्यार से ‘बा’ कहकर पुकारते थे।

कस्तूरबा गांधी जी के पिता एक धनी व्यवसायी थे। शादी से पहले तक कस्तूरबा पढ़ना-लिखना नहीं जानती थीं।

गांधी जी ने उन्हें लिखना-पढ़ना सिखाया। एक आदर्श पत्नी की तरह बा ने गांधी जी का हर एक काम में साथ दिया।

साल 1885 में गांधी जी की पहली संतान ने जन्म लिया, लेकिन कुछ समय बाद ही निधन हो गया था।

महात्मा गांधी के चार पुत्र थे। हरिलाल गांधी, रामदास गांधी, देवदास गांधी और मणिलाल गांधी।

हरिलाल गांधी, गांधी जी के सबसे बड़े पुत्र थे।

गांधी जी दक्षिण अफ्रीका में (1893 - 1914)


गांधी जी 24 साल की उम्र में दक्षिण अफ्रीका पहुंचे। 

वह प्रिटोरिया स्थित कुछ भारतीय व्यापारियों के न्यायिक सलाहकार के तौर पर वहां गए थे।

उन्होंने अपने जीवन के 21 साल दक्षिण अफ्रीका में बिताये जहाँ उनके राजनैतिक विचार और नेतृत्व कौशल का विकास हुआ।

दक्षिण अफ्रीका में उनको गंभीर नस्ली (काला गोरा) भेदभाव का सामना करना पड़ा। 


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एक बार तो उनके साथ ट्रेन में प्रथम श्रेणी कोच की वैध टिकट होने के बाद तीसरी श्रेणी के डिब्बे में जाने से इन्कार करने के कारण उन्हें ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया।

ये सारी घटनाएँ उनके के जीवन में महत्वपूर्ण मोड़ बन गयी और मौजूदा सामाजिक और राजनैतिक अन्याय के प्रति जागरुकता का कारण बनीं।

वहाँ होने वाले अन्याय के खिलाफ "अवज्ञा आंदोलन (Disobedience Movement)" चलाया और इसके पूर्ण होने के बाद भारत लौटे।

उन्होंने भारतियों की नागरिकता सम्बंधित मुद्दे को भी दक्षिण अफ्रीकी सरकार के सामने उठाया।

1906 जुलु युद्ध



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1906 में, दक्षिण अफ्रीका में नए चुनाव कर के लागू करने के बाद दो अंग्रेज अधिकारियों को जुलु लोगो ने मार डाला।

बदले में अंग्रेजों ने जूलू के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया।

गांधी जी ने भारतीयों को भर्ती करने के लिए ब्रिटिश अधिकारियों को सक्रिय रूप से प्रेरित किया।

उनका तर्क था अपनी नागरिकता के दावों को कानूनी जामा पहनाने के लिए भारतीयों को युद्ध प्रयासों में सहयोग देना चाहिए।

तथापि, अंग्रेजों ने अपनी सेना में भारतीयों को पद देने से इंकार कर दिया था।

इसके बावजूद उन्होने गांधी जी के इस प्रस्ताव को मान लिया कि भारतीय घायल अंग्रेज सैनिकों को उपचार के लिए स्टेचर पर लाने के लिए स्वैच्छा पूर्वक कार्य कर सकते हैं।

इस काम की बागडोर गांधी जी ने खुद थामी।


भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का संघर्ष गांधी जी द्वारा (1916 - 1945)



1914 में गांधी जी दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस लौट आये।

इस समय तक गांधी जी एक राष्ट्रवादी नेता और संयोजक के रूप में प्रतिष्ठित हो चुके थे। 

वह उदारवादी कांग्रेस नेता गोपाल कृष्ण गोखले के कहने पर भारत आये थे और शुरूआती दौर में गाँधी के विचार बहुत हद तक गोखले के विचारों से प्रभावित थे।

प्रारंभ में गाँधी ने देश के विभिन्न भागों का दौरा किया और राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक मुद्दों को समझने की कोशिश की।


चम्पारण और खेड़ा सत्याग्रह 1918


बिहार के चम्पारण और गुजरात के खेड़ा में हुए आंदोलनों ने गाँधी को भारत में पहली राजनैतिक सफलता दिलाई।

बिहार के चंपारण में ब्रिटिश जमींदार किसानों को खाद्य फसलों की बजाए नील की खेती करने के लिए मजबूर करते थे और सस्ते मूल्य पर फसल खरीदते थे।

जिससे किसानों की स्थिति बहोत खराब होती जा रही थी। इस कारण वे किसान अत्यधिक गरीबी से घिर गए थे।

एक विनाशकारी अकाल के बाद अंग्रेजी सरकार ने दमनकारी कर लगा दिए जिनका बोझ दिन प्रतिदिन बढता ही गया, कुल मिलाकर किसानों की स्थिति बहुत निराशाजनक थी।

गांधी जी ने जमींदारों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और हड़तालों का नेतृत्व किया जिसके बाद गरीब और किसानों की मांगों को माना गया।

1918 में गुजरात स्थित खेड़ा, बाढ़ और सूखे की चपेट में आ गया था जिसके कारण किसान और गरीबों की स्थिति खराब हो गयी और लोग कर माफी की मांग करने लगे। 


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FLOOD  बाढ़


खेड़ा में गाँधी जी के मार्गदर्शन में सरदार पटेल ने अंग्रेजों के साथ इस समस्या पर विचार विमर्श के लिए किसानों का नेतृत्व किया।

इसके बाद अंग्रेजों ने राजस्व संग्रहण से मुक्ति देकर सभी कैदियों को रिहा कर दिया।

इस प्रकार चंपारण और खेड़ा के बाद गांधी जी की ख्याति देश भर में फैल गई और वह स्वतंत्रता आन्दोलन के एक महत्वपूर्ण नेता बनकर उभरे।


खिलाफत आन्दोलन 1919


कांग्रेस के अन्दर और मुस्लिमों के बीच अपनी लोकप्रियता बढ़ाने का मौका गाँधी जी को खिलाफत आन्दोलन के जरिये मिला।

खिलाफत आन्दोलन एक विश्वव्यापी आन्दोलन था जिसके द्वारा खलीफा के गिरते प्रभुत्व का विरोध सारी दुनिया के मुसलमानों द्वारा किया जा रहा था।

प्रथम विश्व युद्ध में पराजित होने के बाद ओटोमन साम्राज्य विखंडित कर दिया गया था जिसके कारण मुसलमानों को अपने धर्म और धार्मिक स्थलों के सुरक्षा को लेकर चिंता बनी हुई थी।


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MACCA SAUDI ARAB


भारत में खिलाफत का नेतृत्व ‘आल इंडिया मुस्लिम कांफ्रेंस’ द्वारा किया जा रहा था। धीरे-धीरे गाँधी इसके मुख्य प्रवक्ता बन गए।

भारतीय मुसलमानों के साथ एकजुटता व्यक्त करने के लिए उन्होंने अंग्रेजों द्वारा दिए सम्मान और मैडल वापस कर दिया।

इसके बाद गाँधी जी न सिर्फ कांग्रेस बल्कि देश के एकमात्र ऐसे नेता बन गए जिसका प्रभाव विभिन्न समुदायों के लोगों पर था।

असहयोग आन्दोलन 1920


गाँधी जी का मानना था की भारत में अंग्रेजी हुकुमत भारतियों के सहयोग से ही संभव हो पाई थी और अगर हम सब मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ हर बात पर असहयोग करें तो आजादी संभव है।

गाँधी जी की बढती लोकप्रियता ने उन्हें कांग्रेस का सबसे बड़ा नेता बना दिया था और अब वह इस स्थिति में थे कि अंग्रेजों के विरुद्ध असहयोग, अहिंसा तथा शांतिपूर्ण प्रतिकार जैसे अस्त्रों का प्रयोग कर सकें।

इसी बीच जलियावांला नरसंहार जिसे अमृतसर नरसंहार के नाम से भी जाना जाता है (13 अप्रैल 1919) ने देश को भारी आघात पहुंचाया जिससे जनता में क्रोध और हिंसा की ज्वाला भड़क उठी थी।

गांधी जी ने स्वदेशी नीति का आह्वान किया जिसमें विदेशी वस्तुओं विशेषकर अंग्रेजी वस्तुओं का बहिष्कार करना था।

उनका कहना था कि सभी भारतीय अंग्रेजों द्वारा बनाए वस्त्रों की अपेक्षा हमारे अपने लोगों द्वारा हाथ से बनाई गई खादी पहनें।

उन्होंने पुरूषों और महिलाओं को प्रतिदिन सूत कातने के लिए कहा।

इसके अलावा महात्मा गाँधी ने ब्रिटेन की शैक्षिक संस्थाओं और अदालतों का बहिष्कार, सरकारी नौकरियों को छोड़ने तथा अंग्रेजी सरकार से मिले तमगों और सम्मान को वापस लौटाने का भी अनुरोध किया।

असहयोग आन्दोलन को अपार सफलता मिल रही थी जिससे समाज के सभी वर्गों में जोश और भागीदारी बढ गई लेकिन फरवरी 1922 में इसका अंत चौरी-चौरा कांड के साथ हो गया।


चौरी चौरा कांड 5 फरवरी 1922 


असहयोग आंदोलन बंद होने का एक प्रमुख कारण था।

चौरी चौरा, उत्तर प्रदेश में गोरखपुर के पास का एक कस्बा है जहाँ 5 फरवरी 1922 को भारतीयों ने ब्रिटिश सरकार की एक पुलिस चौकी को आग लगा दी थी।

जिससे 22 पुलिस कर्मचारी जिन्दा जल के मर गए थे।

इसी घटना को चौरीचौरा काण्ड के नाम से जाना जाता है।

इसके परिणामस्वरूप गांधी जी ने कहा था कि हिंसा होने के कारण असहयोग आन्दोलन उपयुक्त नहीं रह गया है और उसे वापस ले लिया था।

चौरी-चौरा कांड के अभियुक्तों का मुकदमा पंडित मदन मोहन मालवीय ने लड़ा और उन्हें बचा ले जाना उनकी एक बड़ी सफलता थी।

इस हिंसक घटना के बाद गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया जैसा कि मैंने आपको बताया।

इस घटना के बाद गांधी जी को गिरफ्तार कर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया जिसमें उन्हें छह साल कैद की सजा सुनाई गयी।

खराब स्वास्थ्य के चलते उन्हें फरवरी 1924 में सरकार ने रिहा कर दिया।


स्वराज और नमक सत्याग्रह


असहयोग आन्दोलन के दौरान गिरफ्तारी के बाद गांधी जी फरवरी 1924 में रिहा हुए और 1928 तक सक्रिय राजनीति से दूर ही रहे।

इस दौरान वह स्वराज पार्टी और कांग्रेस के बीच मनमुटाव को कम करने में लगे रहे और इसके अतिरिक्त अस्पृश्यता, शराब, अज्ञानता और गरीबी के खिलाफ भी लड़ते रहे।

इसी समय 1928 में अंग्रेजी सरकार ने सर जॉन साइमन के नेतृत्व में भारत के लिए एक नया संवैधानिक सुधार आयोग बनाया पर उसका एक भी सदस्य भारतीय नहीं था जिसके कारण भारतीय राजनैतिक दलों ने इसका बहिष्कार किया।

इसके पश्चात दिसम्बर 1928 के कलकत्ता अधिवेशन में गांधी जी ने अंग्रेजी हुकुमत को भारतीय साम्राज्य को सत्ता प्रदान करने के लिए कहा और ऐसा न करने पर देश की आजादी के लिए असहयोग आंदोलन का सामना करने के लिए तैयार रहने के लिए भी कहा।

अंग्रेजों द्वारा कोई जवाब नहीं मिलने पर 31 दिसम्बर 1929 को लाहौर में भारत का झंडा फहराया गया और कांग्रेस ने 26 जनवरी 1930 का दिन भारतीय स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया। 


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इसके पश्चात गांधी जी ने सरकार द्वारा नमक पर कर लगाए जाने के विरोध में नमक सत्याग्रह चलाया जिसके अंतर्गत उन्होंने 12 मार्च से 6 अप्रैल तक अहमदाबाद से दांडी, गुजरात, तक लगभग 388 किलोमीटर की पैदल यात्रा की।

इस यात्रा का उद्देश्य स्वयं नमक उत्पन्न करना था। 


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SALT PRODUCTION



इस यात्रा में हजारों की संख्‍या में भारतीयों ने भाग लिया और अंग्रेजी सरकार को विचलित करने में सफल रहे। 

इस दौरान सरकार ने लगभग 60 हजार से अधिक लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेजा।

इसके बाद लार्ड इरविन के प्रतिनिधित्व वाली सरकार ने गांधी जी के साथ विचार-विमर्श करने का निर्णय लिया जिसके फलस्वरूप गांधी-इरविन संधि पर मार्च 1931 में हस्ताक्षर हुए।

गांधी-इरविन संधि के तहत ब्रिटिश सरकार ने सभी राजनैतिक कैदियों को रिहा करने के लिए सहमति दे दी।

इस समझौते के परिणामस्वरूप गांधी कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में लंदन में आयोजित गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया परन्तु यह सम्मेलन कांग्रेस और दूसरे राष्ट्रवादियों के लिए घोर निराशाजनक रहा।

इसके बाद गांधी जी फिर से गिरफ्तार कर लिए गए और सरकार ने राष्ट्रवादी आन्दोलन को कुचलने की कोशिश की।

1934 में गांधी ने कांग्रेस की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया।

उन्होंने राजनीतिक गतिविधियों के स्थान पर अब ‘रचनात्मक कार्यक्रमों’ के माध्यम से ‘सबसे निचले स्तर से’ राष्ट्र के निर्माण पर अपना ध्यान लगाया।

उन्होंने ग्रामीण भारत को शिक्षित करने, छुआछूत के खिलाफ आन्दोलन जारी रखने, कताई, बुनाई और अन्य कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने और लोगों की आवश्यकताओं के अनुकूल शिक्षा प्रणाली बनाने का काम शुरू किया।


हरिजन
आंदोलन


दलित नेता बी आर अम्बेडकर की कोशिशों के परिणामस्वरूप अंग्रेजी सरकार ने अछूतों के लिए एक नए संविधान के अंतर्गत पृथक निर्वाचन मंजूर कर दिया था।

येरवडा जेल में बंद गांधीजी ने इसके विरोध में सितंबर 1932 में छ: दिन का उपवास किया और सरकार को एक समान व्यवस्था (पूना पैक्ट) अपनाने पर मजबूर किया।

अछूतों के जीवन को सुधारने के लिए गांधी जी द्वारा चलाए गए अभियान की यह शुरूआत थी।

8 मई 1933 को गांधी जी ने आत्म-शुद्धि के लिए 21 दिन का उपवास किया और हरिजन आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए एक-वर्षीय अभियान की शुरुआत की।

अंबेडकर जैसे दलित नेता इस आन्दोलन से प्रसन्न नहीं थे और गांधी जी द्वारा दलितों के लिए हरिजन शब्द का उपयोग करने की निंदा की।

द्वितीय विश्व युद्ध और ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’


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2nd WORLD WAR


जैसे-जैसे युद्ध बढता गया गांधी जी और कांग्रेस ने ‘भारत छोड़ो” आन्दोलन की मांग को तीव्र कर दिया।

‘भारत छोड़ो’ स्वतंत्रता आन्दोलन के संघर्ष का सर्वाधिक शक्तिशाली आंदोलन बन गया जिसमें व्यापक हिंसा और गिरफ्तारी हुई।

इस संघर्ष में हजारों की संख्‍या में स्वतंत्रता सेनानी या तो मारे गए या घायल हो गए और हजारों गिरफ्तार भी कर लिए गए।

गांधी जी ने यह स्पष्ट कर दिया था कि वह ब्रिटिश युद्ध प्रयासों को समर्थन तब तक नहीं देंगे जब तक भारत को तत्‍काल आजादी न दे दी जाए।

उन्होंने यह भी कह दिया था कि व्यक्तिगत हिंसा के बावजूद यह आन्दोलन बन्द नहीं होगा। 

उनका मानना था की देश में व्याप्त सरकारी अराजकता असली अराजकता से भी खतरनाक है।

गाँधी जी ने सभी कांग्रेसियों और भारतीयों को अहिंसा के साथ करो या मरो (DO OR DIE) के साथ अनुशासन बनाए रखने को कहा।

जैसा कि सबको अनुमान था अंग्रेजी सरकार ने गांधी जी और कांग्रेस कार्यकारणी समिति के सभी सदस्यों को मुबंई में 9 अगस्त 1942 को गिरफ्तार कर लिया और गांधी जी को पुणे के आंगा खां महल ले जाया गया जहाँ उन्हें दो साल तक बंदी बनाकर रखा गया।

इसी दौरान उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी का देहांत बाद 22 फरवरी 1944 को हो गया और कुछ समय बाद गांधी जी भी मलेरिया से पीड़ित हो गए।

अंग्रेजो ने उन्हें इस हालत में जेल में नहीं छोड़ सकते थे इसलिए जरूरी उपचार के लिए 6 मई 1944 को उन्हें रिहा कर दिया गया।

आशिंक सफलता के बावजूद भारत छोड़ो आंदोलन ने भारत को संगठित कर दिया और द्वितीय विश्व युद्ध के अंत तक ब्रिटिश सरकार ने स्पष्ट संकेत दे दिया था की जल्द ही सत्ता भारतीयों के हाँथ सौंप दी जाएगी।

गांधी जी ने भारत छोड़ो आंदोलन समाप्त कर दिया और सरकार ने लगभग 1 लाख राजनैतिक कैदियों को रिहा कर दिया।

देश का विभाजन और आजादी


जैसा कि पहले कहा जा चुका है, द्वितीय विश्व युद्ध के समाप्त होते-होते ब्रिटिश सरकार ने देश को आजाद करने का संकेत दे दिया था।

भारत की आजादी के आन्दोलन के साथ-साथ, जिन्ना के नेतृत्व में एक ‘अलग मुसलमान बाहुल्य देश’ (पाकिस्तान) की भी मांग तीव्र हो गयी थी और 40 के दशक में इन ताकतों ने एक अलग राष्ट्र ‘पाकिस्तान’ की मांग को वास्तविकता में बदल दिया था।

गाँधी जी देश का बंटवारा नहीं चाहते थे क्योंकि यह उनके धार्मिक एकता के सिद्धांत से बिल्कुल अलग था।

पर गांधी जी ऐसा होने से रोक ना पाए और अंग्रेजों ने हमारे प्यारे भारत देश को दो टुकड़ों भारत और पाकिस्तान में विभाजित कर दिया।


महात्मा गांधी की मृत्यु


30 जनवरी 1948 को शाम 5 बजकर 17 मिनट पर नाथूराम गोडसे और उनके सहयोगी गोपालदास ने बिरला हाउस में गांधी जी की गोली मारकर हत्या कर दी थी।

गांधी जी को तीन गोलियां मारी गयी थी, अंतिम समय उनके मुख से ‘हे राम’ शब्द निकले थे।

नाथूराम गोडसे और उसके सहयोगी पर मुकदमा चलाया गया और 1949 में उन्हें मौत की सजा सुनाई गयी।

उनकी मृत्यु के बाद नई दिल्ली के राजघाट पर उनका समाधि स्थल बनाया गया है।


महत्वपूर्ण बातें


गांधी जी ने अपनी आत्मकथा द स्टोरी ऑफ माय एक्सपेरिमेंट्स विथ ट्रुथ " (The Story of My Experiments with Truth) में दर्शन और अपने जीवन के मार्ग का वर्णन किया है।

गाँधी जी एक सफल लेखक भी थे। कई दशकों तक वे अनेक पत्रों का संपादन कर चुके थे जिसमे हरिजन, इंडियन ओपिनियन, यंग इंडिया आदि सम्मिलित हैं।

जब वे भारत में वापस आए तब उन्होंने 'नवजीवन' नामक मासिक पत्रिका निकाली। बाद में नवजीवन का प्रकाशन हिन्दी में भी हुआ।


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गाँधी जी द्वारा लिखित पुस्तकें



गाँधी जी द्वारा मौलिक रूप से लिखित पुस्तकें चार हैं - हिंद स्वराज, दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास, सत्य के प्रयोग (आत्मकथा), तथा गीता पदार्थ कोश सहित संपूर्ण गीता की टीका।

गाँधी जी आमतौर पर गुजराती में लिखते थे, परन्तु अपनी किताबों का हिन्दी और अंग्रेजी में भी अनुवाद करते या करवाते थे।

महात्मा गांधी के चार पुत्र थे। हरिलाल गांधी, रामदास गांधी, देवदास गांधी और मणिलाल गांधी।

हरिलाल गांधी, गांधी जी के सबसे बड़े पुत्र थे।

महात्मा गांधी के राजनीतिक गुरू गोपाल कृष्ण गोखले थे।

गांधी जी के गुरु बाल गंगाधर तिलक भी रहे हैं।

 


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3 comments:

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